इस्लामिक साल का नवां महीना होता है जो की शाबान महीने के बाद आता है. इस्लाम धर्म की माने तो इससे मुबारक महीना कोई और नहीं है। इस महीने में हर बालिग मुसलमान पर रोज़ा फर्ज़ है, रोज़ा इस्लाम के पाँच फर्ज़- शहादत(कलमा) ,नमाज़,जकात,हज और रोज़ा है जिसका ज़िक्र कुरआन में भी किया गया है। इस महीने में मुसलमान अपनी भूख प्यास का ख्याल ना करते हुए अपने मालिक (रब) को खुश करने के लिए 30 दिनों का रोजा रखता है। माना जाता है की अन्य महीनों की इबादत के मुकाबले इस महीने में सवाब 70 गुना बढ़ जाता है, इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार सन् 2 हिजरी में अल्लाह के हुक्म से हर बालिग मुसलमान पर रोज़ा फर्ज़ किया गया था, इसी महीने में कुछ ऐसी रातें (21,23,25,27 वा 29)भी आती हैं जिसमें मुसलमान मस्जिदों या अपने घरों में पूरी रात जाग कर अल्लाह की इबादत करता और अपने गुनाहों की मुआफ़ी माँगता है इन्ही रातों को लैलतुल कद्र कहते हैं, माना जाता है की इन्ही रातों में से किसी एक रात में कुरआन नाज़िल किया गया था।
इसी महीने में एक विशेष प्रकार की नमाज़ अदा की जाती है जिसे तरावीह कहते है जो कि अन्य नमाज़ों के अपेक्षा लम्बी होती है, जिसमे कुल 20 रकआत होती हैं यह नमाज़ लम्बी होने की वजह से हर 4 रकआत के बाद थोड़े लम्हे बैठ कर आराम किया जाता है, इस नमाज़ के भी अनेक सवाब हैं। वहीं बात गर की जाए सहरी की तो सहरी का मतलब ही होता है सुबह, उस वक़्त रस्म अदायगी के लिए कुछ ना कुछ खा लेते है और रोजे की नियत करते है बाद वक़्त नमाज-ए-फर्ज़ अदा करते हैं और वहीं से रोजे की शुरूआत होती है, या यूँ कहें की रोजे सफर शुरू होता है। इफ्तारी का वक़्त मगरिब के बाद शुरू होता है, उससे पहले रोजदार अपने हक मे और पूरे जहान के हक मे दुआ माँगता है, मगरिब के आजान सुन कर ही हर रोजदार अपने रोजे को अल्लाह का नाम लेकर खोलता है और रोजे को खोलने के बाद मगरिब की नमाज़ पढ़ता है जिससे उसके रोजे का सफर मुकम्मल होता है।
बात करें इस्लाम के आखिरी पैगंबर हमारे नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तो उन्होंने फरमाया है की माह-ए- रमज़ान के तीन हिस्से होते हैं-पहला हिस्सा रहमत का, दूसरा हिस्सा मग़फिरत का और आखिरी हिस्सा आग से आज़ादी का है। कहा जाए तो रमज़ान चाँद से लेकर चाँद तक का सफर या यूँ कहें की मस्ज़िद से लेकर ईदगाह तक का एक सुहाना सफर होता है। इस्लाम धर्म में इससे पाक वा बरकतों वाला महीना कोई और हो ही नहीं सकता।
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