चुनाव आते ही दरवाजों पर आ जाते हैं
कट्टरता के पुजारी भी रहम खा जाते हैं
औरों को हिन्दू-मुस्लमान का पाठ पढ़ा
खुद मजहबी टोपी पहना जानते हैं
यूँ तो सरेआम फैलाते हैं नफरत
बटोगे तो कटोगे का नारा हमें दे जाते हैं
बात जब खुद की कुर्सी पर आ जाये तो,
झुकाकर सर, कलमा भी पढ़ा जाते हैं
सालों साल मसरूफ रहे अय्याशियों में
अचानक बरसाती मेंढक जैसे चिल्ला जाते हैं
माहौल बनाकर शराब-ओ-सवाब से
गली-चौराहों पर नेता जी छा जाते हैं ।