चुनाव आते ही आ जाते हैं नेता जी

चुनाव आते ही आ जाते हैं नेता जी, अजनबियों को भी गले लगा जाते हैं नेता जी

आज की राजनीति और बीते जमाने की राजनीति में कुछ ज्यादा फर्क नहीं नजर आता। बस पहले नेताओं द्वारा किये जा रहे संबोधन को भाषण मानते थे और आज लोग नेताओं के भाषण को जुमला मानते हैं। खैर चुनाव की अगर बात की जाये तो चुनाव नजदीक आता देख नेताओं प्रचार प्रसार तेज हो जाते हैं। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते हैं, नेताओं द्वारा नेताओं के बयान की झड़ी लग जाती है। वोटरों को साधने के लिए राजनेता किसी भी हद तक चले जाते हैं, जनता को गुमराह करने के लिए न केवल हिंदू-मुस्लिम करते हैं बल्कि वादों की बौछार कर देते हैं।

लेकिन असल मायने में देखा जाये तो ये महज चुनावी वादे होते हैं, असलियत में इनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता है। ऐसा नहीं है कि नेताओं के चुनावी वादों को सिर्फ कागजों में उतारा जाता है बल्कि जनता के बीच भी इसे इस कदर परोसा जाता है मानों जनता इन लभावने विज्ञापनों से पिघल जाएगी और अपना कीमती मत नेता की झोली में डाल देगी। लेकिन ऐसा होता नहीं है। यहां तक की ये नेता चाह लेते हैं तो भाई को भाई से लड़ा देते हैं और पडोसी को पड़ोसी से लड़ा देते हैं। ये सत्ता को पाने के चक्कर में ये किसी भी हद्द तक जा सकते हैं।

आम तौर पर बात पहले के चुनावों की करी जाए तो एक जमाने में सड़क, बिजली, पानी के बड़े वादे होते थे। लेकिन आजकल ऐसे वादे कोई नहीं करता। क्योंकि नेताओं को लोगों के बीच खुद का मजाक बनने का डर होता है। याद हो कि एक जमाने में महंगाई की भी बड़ी भूमिका होती थी चुनावों में। उस जमाने में सब्जियां भी चुनाव हरवाने की कूबत रखती थी। इनमें से सबसे अव्वल पर प्याज का नाम आता है प्याज भी चुनाव हरा और जिता देती थी। वहीं अब की बात की जाये तो अब गठबंधन का जमाना होने के बावजूद सारी सब्जियां मिल भी जाएं तो सरकार को नहीं हिला पातीं। आजकल तो रोजगार का मुद्दा भी कहां चुनावी मुद्दा बन पाता है।

यह सब पुराने जमाने की बातें हो गयी हैं। अब नेता मिनिस्टर सब चतुर हो चुके हैं। इसलिए अब वे वादे करते ही नहीं, गारंटियां करते हैं। चाहो तो उन्हें वादे मान सकते हो। लेकिन मतदाता न जीतने वाले के वादों पर भरोसा कर उसे जिताते हैं और न ही वादों पर भरोसा न करके उन्हें हराते हैं। अगर ऐसा होता तो न जीतने वाले जीतते और न ही हारने वाले हारते। मतलब बातें हैं, बातों का क्या?

चुनाव कोई भी हों नेताओं की मनमानी लगातार चलती रहती है। सत्ता पाने ये लिए नेता तरह-तरह के वादे भी करते हैं लेकिन बाद चुनाव ये वादे महज जुमले ही साबित होते हैं। और अपना उल्लू सीधा करने के बाद ये नेता जनता को पहचनने से भी इंकार कर देते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *