एक ख्याल उनके नाम का

एक शख़्स बे-मिसाल देखा हैनर्गिसी-आंखें, काली पलकेंरंग गोरा ,सुनहरे बालरोने पर चेहरा लाल देखा है वो जो हसें,जग हसे उनकी हंसी में हीअब किसी एक की हंसी बसेसूरत से भोली सीरत का कमाल देखा हैक्या दूं उनको मिसाल जिन्हें बे-मिसाल देखा है हां माना खताएं होती हैं हमसेभटके हैं हम कई बार पर मेरेभटकने में…

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रंगों से तुम हमारी पहचान करते हो

रंगों से तुम हमारी पहचान करते होलाल से हिंदू हरे से मुसलमान करते हो हम हैं एक,एक है रंग खून का,फिर क्यूफैला कर नफ़रत यूं सरे आम करते हो पसंद है सबको सुकून-ए-क़ल्ब,तो क्योंनन्हें परिंदो को यूं बे-जान करते हो माना है मज़हब अलग,पर खुदा एक हैफिर क्यों मज़हब पर कत्ल-ए-आम करते हो फैला कर…

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जाने कैसे वो खुद को मर्द बताते हैं

जाने कैसे वो खुद को मर्द बताते हैंवो बेक़सूर पे बिना वजह हाथ उठाते हैं भूल कर सारी मर्यादाभरी महफिल में वो यूँ गंदी नजरों से घूर जाते हैं खुदा के खौफ से भी वो दरिंदे ना घबराते है गुनाह करके भी ख़ुद को पाक साफ बताते हैं है ये चाल उनकी,जाने कहाँ से वो ये हुनर…

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कहानी उस रानी की…

एक कहानी झांसी की रानी की बहादुरी के नाम क्यों भूल गए तुम उनकी कहानी को उस झाँसी वाली रानी को मैदान में जिसने दहाड़ा था  हज़ार मर्दों को अकेले ही जिसने पछाड़ा था  अपनों की शक्ल मे हर कोई पराया थावक़्त-वक़्त पर हर किसी ने पीठ दिखाया था अंग्रेजों की छाती पर बिगुल विजय का बजाया थासिर झाँसी…

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तू सही मैं गलत, तू एक मैं अलग

तू सही मैं गलततू एक मैं अलगतू अंधेरी रात का चांदमैं चांद में लगे दाग़ सा तू हक़ीक़तमैं ख़्वाब सातू मधुर गीतमैं बदसुरे राग सा तू जलता सूरजमैं बुझे चिराग़ सातू शहजादीमैं गरीब नवाब सा तू रह होश मेंमुझे करके बेहाल जरातू रख ख्याल जरामुझे छोड़ दे मेरे हाल जरा कैसा तेरा मेरा वास्ताअलग है…

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वो औरत है जनाब

वो बिन कसूर दर्द बेहिसाब सहती हैएक बार नहीं महीने मे सात-सात बार सहती हैउन दिनों वो सहमी सी रहती हैशर्म से बातें भी कहां किसी से किया करती है। क्या मंदिर क्या मस्जिद क्या घाट किनारेअब तो रसोई में जाने पर भी पाबंदी रहती हैकसूर ना होकर भी कसूरवार वो रहती हैये एक नहीं…

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बातें लखनऊ की

ए लखनऊ तेरी हवाओं में भी नज़ाकत बहती हैइस शहर में रहने भर से वाबाओं से शिफ़ा मिलती है आप जनाब का है तरीका अदब से बातें करते हैं लोगइमारतें हैं आ’ला देखने भर से चेहरों पर मुस्कान खिलती है जो आते हैं दूर-दराज़ से मुसाफ़िर यहीं के हो जातेयहां की चमक-धमक में भी एक…

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कौन जाने कब क्या होगा

कौन जाने कब क्या-क्या होगाकिस्मत का लिखा किसे पता होगा किसी के सर सजेगा सेहराकोई कफ़न में लिपटा होगा दाएं से उठेगी डोली किसी कीबाएं किसी का जनाजा होगा बाद वक्त,किसी के घर गूंजेगी किलकारियांकिसी के घर आज भी मातम पसरा होगा किसी का लाल टहलेगा आँगन में, तब तकएक मां का चाँद बादलों में…

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उम्मीद की एक रोशनी

बंद कमरा, खुली आंखों में जागते कई ख़्वाबमैं, मेरी तन्हाई चार दिवारी और चंद किताब घड़ी की टिक-टिक, काली सियाह अंधेरी रातबढ़ती उम्र, मांगती नाकामयाबी का हिसाब फिर पूछूं जो खुद से सवाल, किया क्या अब तकगहरी सोच, खामोश लब, नहीं मिलता कोई जवाब ‘उम्मीद’ ही सोच के समंदर में डूबती कश्ती को सहारा देतीआवाज़…

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