छोड़ो भी मंदिर-मस्जिद के नाम पर लड़ना, करो कोशिश एक साथ मिल जुल कर रहना

सरकार, शासन, न्यापालिका और प्रशासन सब इन दिनों चर्चा में हैं। सब पर कहीं न कहीं उंगलियां उठ रही हैं। दरअसल जिस तरह से देश में मंदिर मस्जिद को लेकर विवाद चल रहा है ऐसे में एक बात तो तय है कि सुकून कहीं नहीं है। न ही हिन्दू होने में न ही मुसलमान होने…

Read More

एक ख्याल उनके नाम का

एक शख़्स बे-मिसाल देखा हैनर्गिसी-आंखें, काली पलकेंरंग गोरा ,सुनहरे बालरोने पर चेहरा लाल देखा है वो जो हसें,जग हसे उनकी हंसी में हीअब किसी एक की हंसी बसेसूरत से भोली सीरत का कमाल देखा हैक्या दूं उनको मिसाल जिन्हें बे-मिसाल देखा है हां माना खताएं होती हैं हमसेभटके हैं हम कई बार पर मेरेभटकने में…

Read More

रंगों से तुम हमारी पहचान करते हो

रंगों से तुम हमारी पहचान करते होलाल से हिंदू हरे से मुसलमान करते हो हम हैं एक,एक है रंग खून का,फिर क्यूफैला कर नफ़रत यूं सरे आम करते हो पसंद है सबको सुकून-ए-क़ल्ब,तो क्योंनन्हें परिंदो को यूं बे-जान करते हो माना है मज़हब अलग,पर खुदा एक हैफिर क्यों मज़हब पर कत्ल-ए-आम करते हो फैला कर…

Read More

जाने कैसे वो खुद को मर्द बताते हैं

जाने कैसे वो खुद को मर्द बताते हैंवो बेक़सूर पे बिना वजह हाथ उठाते हैं भूल कर सारी मर्यादाभरी महफिल में वो यूँ गंदी नजरों से घूर जाते हैं खुदा के खौफ से भी वो दरिंदे ना घबराते है गुनाह करके भी ख़ुद को पाक साफ बताते हैं है ये चाल उनकी,जाने कहाँ से वो ये हुनर…

Read More

तू सही मैं गलत, तू एक मैं अलग

तू सही मैं गलततू एक मैं अलगतू अंधेरी रात का चांदमैं चांद में लगे दाग़ सा तू हक़ीक़तमैं ख़्वाब सातू मधुर गीतमैं बदसुरे राग सा तू जलता सूरजमैं बुझे चिराग़ सातू शहजादीमैं गरीब नवाब सा तू रह होश मेंमुझे करके बेहाल जरातू रख ख्याल जरामुझे छोड़ दे मेरे हाल जरा कैसा तेरा मेरा वास्ताअलग है…

Read More

वो औरत है जनाब

वो बिन कसूर दर्द बेहिसाब सहती हैएक बार नहीं महीने मे सात-सात बार सहती हैउन दिनों वो सहमी सी रहती हैशर्म से बातें भी कहां किसी से किया करती है। क्या मंदिर क्या मस्जिद क्या घाट किनारेअब तो रसोई में जाने पर भी पाबंदी रहती हैकसूर ना होकर भी कसूरवार वो रहती हैये एक नहीं…

Read More

उम्मीद की एक रोशनी

बंद कमरा, खुली आंखों में जागते कई ख़्वाबमैं, मेरी तन्हाई चार दिवारी और चंद किताब घड़ी की टिक-टिक, काली सियाह अंधेरी रातबढ़ती उम्र, मांगती नाकामयाबी का हिसाब फिर पूछूं जो खुद से सवाल, किया क्या अब तकगहरी सोच, खामोश लब, नहीं मिलता कोई जवाब ‘उम्मीद’ ही सोच के समंदर में डूबती कश्ती को सहारा देतीआवाज़…

Read More

किसी में ज़्यादा किसी में कम है

किसी में ज़्यादा किसी में कम हैयहां हर शख्स की जिंदगी में गम है कोई खुश है कच्चे मकानों मेंकिसी के लिए महल भी कम है कोई छुपा लेता है अपने आंसूकिसी की आंखें आज भी नम है बद-हाली से कई हार चुके हैं ये जंगजीतेगा वही जिसमें जीतने का दम है। मोहम्मद इरफ़ान

Read More

मैं मेरी तन्हाई और अधूरे ख्वाब

बंद कमरा, खुली आंखों में जागते कई ख्वाबमैं, मेरी तन्हाई चार दिवारी और चंद किताब घड़ी की टिक-टिक, काली सियाह अंधेरी रातबढ़ती उम्र, मांगती नाकामयाबी का हिसाब फिर पूछूं जो खुद से सवाल, किया क्या अब तकगहरी सोच, खामोश लब, नहीं मिलता कोई जवाब ‘उम्मीद’ ही सोच के समंदर में डूबती कश्ती को सहारा देतीआवाज़…

Read More

आओ नया मुल्क बनाएं…

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई चारों मिलएक थाली में खाएंमुल्क की तरक्की का ज़िम्माअपने कंधों पर हम उठाएंआओ नया मुल्क बनाएं हरा सफेद केसरिया मिला एक तिरंगाअपने हाथों में उठाएंचारों मिल उसे बुलंदियों पर ले जाएंशीश शिखर पर अपना हम उठाएंआओ नया मुल्क बनाएं क्यों ना तहज़ीबों की एक मशाल बनाएंएकता की चिंगारी से नफरतों को…

Read More