रचयिता द्वारा 20-21 सितंबर 2024 को दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्ट्स फैक्लटी में दो-दिवसीय साहित्योत्सव का आयोजन किया। इस साहित्योत्सव में नामी-गिरामी हस्तियाँ शामिल रहीं। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र का विषय ‘नए भारत में साहित्य और संस्कृति’ रहा। इस सत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. योगेश सिंह, संस्कृति परिषद् के चैयर पर्सन अनूप लाठर(दि.वि.), कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. अमिताभ चक्रवर्ती (दि.वि.), वरिष्ठ प्रोफेसर श्यौराज सिंह बेचैन(दि.वि.) और हंसराज महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. रमा गरिमामयी उपस्थिति रही।
प्रो. योगेश सिंह ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि भाषा अपने आप में मजबूत नहीं होती बल्कि उसे बोलने वाले लोग होते हैं। अब जो समय आने वाला है वह हिंदी का समय है। उन्होंने भाषा के प्रचार-प्रसार में मंचीय कवियों और स्क्रिप्ट राइटरों के महत्त्व को भी रेखांकित किया। वहीं प्रो. रमा ने साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि साहित्य जीवन की अनुभूति का निचोड़ है जिसे हम पढ़कर जी सकते हैं।
कार्यक्रम का पहला सत्र ‘लोक कला: अनुभव, परंपरा और चुनौतियां’ पर केंद्रित रहा। इस विषय पर अनूप लाठर ने विस्तार से चर्चा की। वहीं दूसरा सत्र ‘अमृतकाल में स्त्री : कितना अमृत, कितना विष’ में देश का प्रसिद्ध महाविद्यालय मिरांडा हाउस की प्राचार्या प्रो. बिजय लक्ष्मी नंदा, NCWEB की अध्यक्ष प्रो. गीता भट्ट एवं जेएनयू की प्रो. वंदना झा शामिल रहीं। सत्र में स्त्री-पुरूष समानता, स्त्री अधिकारों और स्त्री-पुरूष के सहयोग से एक स्वस्थ समाज के निर्माण की जरूरत को रेखांकित किया गया।
तीसरे सत्र में ‘तुलसी और कबीर : भक्ति साहित्य के परस्पर पूरक या विरोधी’ विषय पर जेएनयू में रहे प्रो. डॉ. ओमप्रकाश सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रो. अनिल राय एवं कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज के हिंदी विभाग के डॉ. विनय विश्वास वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। प्रो. अनिल राय ने कहा कि तुलसी और कबीर को विरोधी रूप में प्रस्तुत कर उनकी व्याख्या करना सही नहीं है। उन्होंने बड़े ही प्रामाणिक ढंग से अपनी बात रखी। सभी वक्ताओं ने तुलसी और कबीर के संदर्भ में कुछ नवीन तथ्यों का उद्घाटन किया।
चौथा सत्र ‘दलित-आदिवासी महिला लेखन : दशा और दिशा’ से संबंधित रहा। इस विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कॉलेज के हिंदी विभाग की प्रो. रजत रानी मीनू जी, लक्ष्मीबाई कॉलेज की डॉ. नीलम, जेएनयू के डॉ. गंगा सहाय मीणा ने अपनी बात रखी। प्रो. रजत रानी मीनू ने कहा कि दलित और आदिवासी महिलाओं को अपना दर्द खुद उकेरना होगा। जब तक वे खुद नहीं लिखेंगी तो भला उनकी दशा और दिशा में क्या और कैसे परिवर्तन आएगा।
शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो महिलाओं को अपनी आवाज़ बुलंद करने की ताकत देता है। वहीं डाॅ. गंगा सहाय मीणा ने कहा कि दलित महिला लेखन की तुलना में आदिवासी महिला लेखन की आवाज़ अभी कम है। डाॅ. नीलम ने दलित महिला लेखन की चेतना के मुख्य स्वर को प्रकट किया। इसके उपरांत युवा कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया गया।
कार्यक्रम के दूसरे दिन के पहले सत्र का विषय – ‘साहित्य पठन-पाठन में विमर्शों की भूमिका’ था। इस सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुशीला टाकभौरे जी, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन, वरिष्ठ साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम शामिल रहे। डाॅ. सुशीला टाकभौरे ने कहा कि 21 वीं सदी में किसी को भी शोषित और पीड़ित नहीं किया जा सकता। विश्व स्तर इस पर बात होने चाहिए। स्त्रीवाद पाश्चात्य स्त्रीवाद से प्रभावित रहा है, जबकि दलित स्त्रीवाद डाॅ. भीमराव अम्बेडकर से प्रभावित है। डाॅ. जय प्रकाश कर्दम ने कहा कि विमर्श वहाँ जन्म लेता है जहाँ अहसमति होती है।
जड़ता को तोड़ने के लिए विमर्श की जरूरत होती है। प्रकृति, प्रेम और युद्ध परंपरागत साहित्य का केंद्रीय बिंदु रहा है। विमर्श ने प्रतिकार को आधार दिया है। दलित साहित्य ने जड़ता को तोड़ा है और उसे मानवीय बनाया है। दलित साहित्य ने दबी हुई आवाज को उठाया है। समाज बंटा हुआ है इसलिए साहित्य भी बंटा हुआ है। और जिस साहित्य ने इसे छुपाया है, यह उसका दोष है। दलित साहित्य की पहली अवधारणा समानता का भाव है। दलित साहित्य समाज को लोकतांत्रिक बनाता है। वहीं प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन ने कहा कि साहित्य में दलित पैंथर के बाद दलित साहित्य मुख्य रूप से सामने आया।
दूसरा सत्र ‘परिसर जीवन और दिल्ली : ये दिन, वे दिन’ नामक विषय पर डॉ. विमलेश कांति वर्मा से डाॅ. दीपक जायसवाल ने बातचीत कर अनुवादक के महत्त्व को उद्घाटित किया और ‘हिंदी साहित्य में संस्कृति से निर्वासन : कश्मीर के आईने में’ विषय पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अग्निशेखर एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. क्षमा कौल से दिल्ली विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग के डॉ. बलजिंदर नसराली ने कश्मीर के मुद्दों पर खुलकर बातचीत की।
वहीं चौथे सत्र का विषय ‘आपातकाल और साहित्य’ था, जिसमें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय जी एवं बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य प्रो. अरुण भगत जी ने आपातकाल के अनदेखे पक्षों को रेखांकित किया। साथ ही वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को समझने की एक दृष्टि दी।
सभी सत्रों के उपरांत भारतीय संस्कृति की सुंदर झांकी प्रस्तुत की गई। जिसमें भारतीय नृत्य और गायन ने दर्शकों का मन मोह लिया। इसके साथ ही सरोद और तबला वादकों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए।
पीयूष पुष्पम
संस्थापक, रचयिता