इतनी सी उम्र में बहुत कुछ दिया
ए ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया
कभी मोहब्बत में इज़हार किया
तो कभी मोहब्बत ने दरकिनार किया
ए ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया
कभी गम में डूबे
तो कभी खुशियों का अब्र दिया
कभी सिर से छत छिनी
तो कभी शाह का घर दिया
ए ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया
भूख से निकले दम
ए ज़िन्दगी तू ना कर इतने सितम
खाने के लाले ना, थे निवाले
तो कभी अनाजों से घर भर दिया
ए ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया
लोगों पे क्या कहर किया
गिरे वक़्त में अपनों ने भी गैर किया
कुछ तो डूब गए अपनों के ग़म में
तो कुछ ने बस सब्र किया
ख़ैर, जो दिया सो दिया
गलतफहमियों से कर दिया रिहा
ए ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया
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