“एक राष्ट्र एक चुनाव” का सरलतम रूप है कि भारत में संघीय ढांचे के सभी (तीनों) स्तरो के लिए चुनाव एक समकालीन व्यवहार से होगा। इसमें एक मतदाता किसी दिन में सभी सरकारी स्तरों ( केंद्रीय, राज्य, और स्थानीय) चुनाव के लिए अपना वोट डालेगा. यह देश में पहली बार नहीं हो रहा है देश में आजादी से लेकर अब तक कई बार वन नेशन वन इलेक्शन के सुझाव दिए जा चुके हैं। आजादी के बाद से ही देश लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा चुके हैं, इस तरह का चुनावी सिलसिला 1952, 1957, 1962 और 1967 तक सही तरीके से चला लेकिन 1978-69 के चुनाव से पहले ही कुछ राज्यों की विधानसभा भंग कर दी गई और साल 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई।
2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वन नेशन वन इलेक्शन विचार पेश किया गया
समय बीतता गया और सन 1999 के Law Commission ने Election Reform पर अपनी रिपोर्ट में one nation one election की सिफारिश की थी। इसके बाद साल 2015 में संसदीय स्थाई समिति की 79वीं रिपोर्ट में One Nation One Election आने के लिए समर्थन किया था फिर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वन नेशन वन इलेक्शन विचार पेश किया गया 2017 में नीति आयोग द्वारा वन नेशन वन इलेक्शन पर वर्किंग फाइल तैयार कराई गई। 2018 में जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले Law Commission ने एक साथ चुनाव पर अपनी मसौदा रिपोर्ट जारी की थी।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया
इसके बाद से ही सत्ताधारी पार्टी भाजपा वन नेशन वन इलेक्शन के समर्थन में लगातार आवाज उठाती रही है।
इसी क्रम को आगे बढ़ते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया।
इस कमेटी में रामनाथ कोविंद के अलावा बताओ और सदस्य अमित शाह, अधीर रंजन चौधरी, गुलाम नबी आजाद, एनके सिंह, सुभाष कश्यप, हरीश साल्वे और संजय कोठारी जैसे बड़े-बड़े नेता शामिल हैं। ..
लेकिन गठन के बाद अब विपक्ष में इसका विरोध किया जा रहा है जिसे लेकर कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस कमेटी का सदस्य बनने से इनकार कर दिया है।
भारत पहला देश नहीं है जहां One Nation One Election लागू होगा
One Nation One Election देश में लागू होने की तो भारत पहला देश नहीं है जहां One Nation One Election लागू होगा।
दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां एक साथ चुनाव कराए जाते हैं- South Africa में राज्यों के चुनाव के साथ-साथ आम चुनाव भी एक ही समय पर कराए जाते हैं। जिसके लिए वहां वोटरों को अलग-अलग वोटिंग पेपर भी दिए जाते हैं। Sweden देश में भी चार वर्ष के बाद राज्य, जिला और आम चुनाव एक साथ आयोजित होते हैं। इसके अलावा बोलिविया, कोलंबिया, गुयाना फिलीपीन और ब्राजील जैसे देश में राष्ट्रपति और विधायी चुनाव एक साथ आयोजित होते हैं।
One Nation One Election से होने वाले फायदों की बात करें तो –
लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने से चुनाव पर होने वाला खर्च कम किया जा सकेगा, मतदान केंद्रों पर EVM के इंतजाम, इसकी सुरक्षा और चुनाव के लिए कर्मचारियों की तैनाती की कवायद बार-बार नहीं करनी पड़ेगी, इससे चुनावी प्रक्रिया में आम लोगों की भागीदारी बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। यह सुनिश्चित करेगा कि प्रशासनिक मशीनरी चुनाव प्रचार के बजाय विकास गतिविधियों में लगी रहे ,ये शिक्षकों को छुट्टियों के डर के बिना काम करने में मदद करेगी। इसके अलावा स्कूल और विश्वविद्यालय भी समय पर खुल सकेंगे। एक साथ चुनाव वोट बैंक तुष्टिकरण की राजनीति के खिलाफ भी काम कर सकते हैं और विधि आयोग के अनुसार एक साथ चुनाव कराने से मतदान प्रतिशत भी बढ़ेगा।
One Nation One Election से कई नुकसान भी हैं।
One Nation One Election लागू होने से मतदाताओं पर फैसला लेने में काफी मुश्किल आएगी।
मजबूत केंद्रीय राजनीति के कारण क्षेत्रीय दल और स्थानीय मुद्दों को उचित तरीके से नहीं उठा पाएंगे।
One Nation One Election भारतीय राजनीति और राजनीति की केंद्रीकरण की प्रवृत्ति को आगे बढ़ाएगा।
एक साथ चुनाव होने से लोगों के प्रति सरकार की जवाब देही पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
बार-बार चुनाव सरकार और विधायिका को नियंत्रण में रखते हैं जो एक साथ चुनाव के मामले में नहीं होगा।
बात करें one nation one election की तो यह केवल राष्ट्रपति शासन के माध्यम से किया जा सकता है जो लोकतंत्र और संघवाद के लिए बड़ी चुनौती और समस्या खड़ी कर देगा।
जिसे लेकर विपक्ष लगातार इसका घेराव कर रही है