घर-घर जा कर लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक करती है प्राथमिक विद्यालय की अध्यापिका

•उत्तर प्रदेश रायबरेली जिले के ग्राम सभा समसपुर के एक प्राथमिक विद्यालय में नियुक्त अध्यापिका ने उनके द्वारा की गई शिक्षा के प्रति इस पहल को साझा करते हुए बताया कि –

मैं एक मध्य वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती हूं। शिक्षा के प्रति मेरी बचपन से ही अधिक रूचि रही है मेरा मानना है कि शिक्षा व साधन है जिसके सहारे हम हर मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति को आसान बना सकते हैं।
सरकारी अध्यापिका बनने से पहले अपनी शिक्षा के दौरान है मैंने करीब 3 सालों तक घर पर ही बच्चों को निशुल्क पढ़ाया है।

साल 2017 में मेरा चयन सरकारी अध्यापिका के लिए हुआ परंतु वह विद्यालय घर से तकरीबन 35 किलोमीटर दूर था, यह भी एक स्त्री के लिए किसी चुनौती से कम नहीं कि वह घर से इतनी दूर पढ़ाने के लिए जाए परंतु मैंने इस चुनौती स्वीकार किया।
यहां आने पर देखने से पता चला विद्यालय की इमारत नई बनी है,मेरे साथ ही दो और लोगों की नियुक्ति हुई थी तथा एक सह अध्यापक पहले से ही विद्यालय में कार्यरत थे।


विद्यालय में विद्यार्थियों की शिक्षा से जुड़े सारे सामान मौजूद थे परंतु विद्यार्थी स्वम् ही नहीं थे। उन दिनों शिक्षक आकर बच्चों का इंतजार करते थे परंतु बच्चों का कोई अता-पता नहीं होता था यदि आते भी थे तो बहुत ही कम संख्या में,वह भी वही विद्यार्थी आते थे जिनके अभिभावक बाहर शहर जाकर अपने जीवन यापन के लिए काम करते थे। ऐसे ही कुछ दिनों तक चलता रहा फिर हमने एक योजना बनाई घर घर जाकर लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने तथा बच्चों को निशुल्क शिक्षा के लिए प्रेरित करने की।

जब मैं अपने सह अध्यापकों के साथ गांव गई तो पता चला कि वहां के ज्यादातर लोग खेती किसानी पर ही निर्भर हैं, उनमें से बहुत कम लोग ही हैं जो शहर जाकर काम करते हैं।
गांव में माता-पिता के साथ साथ बच्चे भी खेती में ही काम करते हैं।
लोगों से जब हमने बात कि,आप लोग अपने बच्चों को विद्यालय क्यों नहीं भेजते ? तो स्थानीय लोगों ने इस पर अपना अलग-अलग जवाब दिया— कौन सा इन्हे पढ़ लिखकर अफसर बनना है, तो किसी ने हैरत भरे अंदाज में मुझसे ही पूछा भला गरीब के बच्चे पढ़ते हैं कहीं?

https://basiceducation.up.gov.in/hi/page/samudayik-sahbhagita

बगल खड़े हरिया ने इसी बात को दोहराते हुए कहा कि “मैडम हम गरीबों के लिए कभी-कभी खाने के लाले पड़ जाते हैं” बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसे कहां से लाएंगे? इस पर मैंने उन्हें समझाया की कक्षा 1 से लेकर 5 तक प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की शिक्षा बिल्कुल मुफ्त होती है यही नहीं बच्चों की किताबें बस्ते ड्रेस यहां तक की दोपहर का खाना भी दिया जाता है। तथा इसके अलावा हर वर्ष वजीफा भी सरकार द्वारा बच्चों को दिया जाता है।

ऐसे ही लोगों के पास जा जाकर प्रेरित करने से आस पास के पाँच गांवों के करीब 56 बच्चे शिक्षा ग्रहण करने के लिए आने लगे हैं। विद्यालय में खाने को लेकर किसी के साथ कोई भेदभाव ना हो इसके लिए दोपहर के खाने (मिड डे मील) में मैं स्वयं उनके साथ बैठकर भोजन करती हूं। तथा खाने की साफ सफाई का भी ध्यान रखा जाता है। बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ साथ डिजिटल ज्ञान भी दिया जाता है जिससे उनकी रुचि बनी रहे तथा उनमें सुधार आ सके इसके लिए प्रोजेक्टर द्वारा भी क्लास करवाती हूं।

यही नहीं वहां के किसान परिवारों के लिए हर साल विद्यालय में ही कृषि मेले का आयोजन भी करवाने का प्रयास हमारे द्वारा किया जाता है जिसमें कृषि विज्ञान के कई विशेषज्ञ किसानों को कृषि में इस्तेमाल किए जाने वाली आधुनिक तकनीकियों के बारे में बताते हैं जिससे उन्हें कृषि में अधिक उन्नति हो तथा बहुत ही कम दम पर उनकी मिट्टी की जांच कर उनके खेती की उपज को बढ़ाया जा सके।
इसी बातचीत के दौरान मैं खुशबू मेहता बताना चाहती हूं कि सरकार द्वारा चलाई गई कोई भी योजना तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक वह जरूरतमंद लोगों तक ना पहुचे।
योजना को लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी न केवल सरकार की है,कहीं ना कहीं यह जिम्मेदारी हमारी और आपकी भी है।
एक बेहतरीन समाज बनाने के लिए लोगों का शिक्षित होना उतना ही जरूरी है जितना हमें जीवित रहने के हमारी धरती पर पानी तथा हवा का मौजूद होना।

✍🏻मोहम्मद इरफ़ान

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