छोड़ो भी मंदिर-मस्जिद के नाम पर लड़ना, करो कोशिश एक साथ मिल जुल कर रहना

सरकार, शासन, न्यापालिका और प्रशासन सब इन दिनों चर्चा में हैं। सब पर कहीं न कहीं उंगलियां उठ रही हैं। दरअसल जिस तरह से देश में मंदिर मस्जिद को लेकर विवाद चल रहा है ऐसे में एक बात तो तय है कि सुकून कहीं नहीं है। न ही हिन्दू होने में न ही मुसलमान होने में। इन नफरती बयनबाजियों और भड़काऊ भाषण के बीच लोग यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि कौन सही है और कौन गलत। कहीं जय श्री राम के नारे लग रहे हैं, कहीं अल्लाह हुअक्बर की सदा गूंज रही है।

असल में तो इन नारों को हम अपने आराध्य की याद में लगाते हैं लेकिन कब तक जब तक हम असल मायने में इंसान होते हैं। और सब कुछ सही चल रहा होता है। सब इंसान ही होते हैं लेकिन इसी बीच चंद धार्मिक गुरु और धर्म को आगे रखकर चलने वाले लोग इन्ही नारों को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं और लोगों को भड़काते हैं जिसके बाद देश और समाज में दंगे भड़कते हैं। जिसमें नुकसान होता है आम आदमी के जान और माल का वहीं ये बने हुए अल्लाह के बंदे और राम भक्त अपना नाम और फायदा देखते हैं।

न सिर्फ ये धर्म गुरु और अंधभक्त बल्कि इन इन भड़कते दंगों से नेताओं के भी दिन बन जाते हैं। होता यूँ है कि इन्हे एक दूसरे की आलोचना करने का मौका मिल जाता है या यूँ कह लें कि इन्हे इन दंगों की भड़कते दंगों की आग में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकनी होती हैं जिसकी वजह से ये दंगों को शांत करवाने के बजाय इसे और भी ज्यादा भड़काते हैं। और गरीबों मजलूमों की कब्र/चिताओं पर राजनीति करते हैं। गजब का ही दिन बन जाता है इनका ये अपने फायदे के लिए भाई को लड़ा देते हैं। भड़कते दंगों के इन्हे अपने चुनाव और वोट की पड़ी होती है। असल मायने में देखा जाये तो अगर ये नेता चाह लें तो कोई दंगा या धार्मिक लड़ाई हो ही न लेकिन ऐसा होता नहीं है। ये नेताओं का फितूर रहा है कि ये दंगों को अवसर की तरह इस्तेमाल करते आये हैं। ऐसा नहीं है कि सही नेता ऐसे ही हैं बल्कि कुछ ऐसे भी हैं जिन्हे इन से काफी असर पड़ता है। कहते हैं कि न कोई दंगा हो न फसाद मगर कहते हैं एक अकेला कर भी क्या सकता है।

इन दिनों की अगर बात की जाये तो हिंदू मुसलमान इस कदर बढ़ गया है कि हर मजार या मस्जिद के नीचे मंदिर खोजी जा रही है। नफरत आये दिन बढ़ती जा रही है। जबकि अगर इंसानियत के नाते बात की जाये तो इन मसलों का हल बैठकर इत्मीनान से भी निकल सकता है। इन नफरती चिंटुओं को अगर बगल हटा दिया जाये तो आपसी सुलह से हर समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। आज भी देश में हिन्दू मुसलमान एक साथ रहते हैं और रहना चाहते हिन्। मगर कुछ लोग हैं जो कौम न नाम डुबा रहे हैं। जति मजहब के नाम पर एक दूसरे को लड़ा रहे हैं। खैर कामना और आसा यही ही कि ये नफरत भरी हवाएं रुक बदल लें और देश में अमन और एकता फिर से ही जाये।

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