अधूरी दास्तान

अधूरी दास्तान, मोहब्बत की सुनो गर जो कभी तुम्हे खुद से नफ़रत होने लगेतो मेरी मोहब्बत याद कर लेनागर जो कभी खुद की गलतियों पे नदामत होने लगेतो मेरी मोहब्बत याद कर लेना माना कि मुश्किल होगा ये सफर हमारा तुम्हारे बिनापर तुम कभी मुझपर तरस खा कर वापस नहीं आनाहो सकता है अब कभी…

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तुम आओगी क्या ?

तुम आओगी क्या ? जब कभी आवाज़ दूंगा, तुम आओगी क्यागिर गया जो अपनी निगाहों में,तुम उठाओगी क्यासीख जाऊंगा मैं सारा फ़लसफ़ातुम अदब-ओ-एहतराम से मुझे सिखाओगी क्या कर लूं मैं यकीन तुम्हें अपना अक्स मान करदे दूं सारा हक़ तुम्हें,ज़िम्मेदारी से निभा पाओगी क्याहोगी जब जरूरत मेरी रहूंगा साए सा साथ तुम्हारेतुम मेरी ज़रूरत में…

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एक ख्याल उनके नाम का

एक शख़्स बे-मिसाल देखा हैनर्गिसी-आंखें, काली पलकेंरंग गोरा ,सुनहरे बालरोने पर चेहरा लाल देखा है वो जो हसें,जग हसे उनकी हंसी में हीअब किसी एक की हंसी बसेसूरत से भोली सीरत का कमाल देखा हैक्या दूं उनको मिसाल जिन्हें बे-मिसाल देखा है हां माना खताएं होती हैं हमसेभटके हैं हम कई बार पर मेरेभटकने में…

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तू सही मैं गलत, तू एक मैं अलग

तू सही मैं गलततू एक मैं अलगतू अंधेरी रात का चांदमैं चांद में लगे दाग़ सा तू हक़ीक़तमैं ख़्वाब सातू मधुर गीतमैं बदसुरे राग सा तू जलता सूरजमैं बुझे चिराग़ सातू शहजादीमैं गरीब नवाब सा तू रह होश मेंमुझे करके बेहाल जरातू रख ख्याल जरामुझे छोड़ दे मेरे हाल जरा कैसा तेरा मेरा वास्ताअलग है…

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वो औरत है जनाब

वो बिन कसूर दर्द बेहिसाब सहती हैएक बार नहीं महीने मे सात-सात बार सहती हैउन दिनों वो सहमी सी रहती हैशर्म से बातें भी कहां किसी से किया करती है। क्या मंदिर क्या मस्जिद क्या घाट किनारेअब तो रसोई में जाने पर भी पाबंदी रहती हैकसूर ना होकर भी कसूरवार वो रहती हैये एक नहीं…

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बातें लखनऊ की

ए लखनऊ तेरी हवाओं में भी नज़ाकत बहती हैइस शहर में रहने भर से वाबाओं से शिफ़ा मिलती है आप जनाब का है तरीका अदब से बातें करते हैं लोगइमारतें हैं आ’ला देखने भर से चेहरों पर मुस्कान खिलती है जो आते हैं दूर-दराज़ से मुसाफ़िर यहीं के हो जातेयहां की चमक-धमक में भी एक…

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कौन जाने कब क्या होगा

कौन जाने कब क्या-क्या होगाकिस्मत का लिखा किसे पता होगा किसी के सर सजेगा सेहराकोई कफ़न में लिपटा होगा दाएं से उठेगी डोली किसी कीबाएं किसी का जनाजा होगा बाद वक्त,किसी के घर गूंजेगी किलकारियांकिसी के घर आज भी मातम पसरा होगा किसी का लाल टहलेगा आँगन में, तब तकएक मां का चाँद बादलों में…

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उम्मीद की एक रोशनी

बंद कमरा, खुली आंखों में जागते कई ख़्वाबमैं, मेरी तन्हाई चार दिवारी और चंद किताब घड़ी की टिक-टिक, काली सियाह अंधेरी रातबढ़ती उम्र, मांगती नाकामयाबी का हिसाब फिर पूछूं जो खुद से सवाल, किया क्या अब तकगहरी सोच, खामोश लब, नहीं मिलता कोई जवाब ‘उम्मीद’ ही सोच के समंदर में डूबती कश्ती को सहारा देतीआवाज़…

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किसी में ज़्यादा किसी में कम है

किसी में ज़्यादा किसी में कम हैयहां हर शख्स की जिंदगी में गम है कोई खुश है कच्चे मकानों मेंकिसी के लिए महल भी कम है कोई छुपा लेता है अपने आंसूकिसी की आंखें आज भी नम है बद-हाली से कई हार चुके हैं ये जंगजीतेगा वही जिसमें जीतने का दम है। मोहम्मद इरफ़ान

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मेरा गांव अपने लोग

यहां के अनाजों में सोने सी चमक मिलती हैखेत खलिहानों में हरियाली देखने को मिलती हैरहती है रौनक गांव के हर एक गली मेंएक दूसरे के दुखों में लोगों की भीड़ साथ मिलती है बहती है सुगंधित हवाएं चारों ओरसूरज की पहली झलक यहीं से देखने को मिलती हैनहीं होता कोई भेद भाव जाति मज़हब…

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