ऐ ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया

इतनी सी उम्र में बहुत कुछ दियाए ज़िन्दगी तेरा शुक्रियाकभी मोहब्बत में इज़हार कियातो कभी मोहब्बत ने दरकिनार कियाए ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया कभी गम में डूबेतो कभी खुशियों का अब्र दियाकभी सिर से छत छिनीतो कभी शाह का घर दियाए ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया भूख से निकले दमए ज़िन्दगी तू ना कर इतने सितमखाने के लाले…

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मैं मेरी तन्हाई और अधूरे ख्वाब

बंद कमरा, खुली आंखों में जागते कई ख्वाबमैं, मेरी तन्हाई चार दिवारी और चंद किताब घड़ी की टिक-टिक, काली सियाह अंधेरी रातबढ़ती उम्र, मांगती नाकामयाबी का हिसाब फिर पूछूं जो खुद से सवाल, किया क्या अब तकगहरी सोच, खामोश लब, नहीं मिलता कोई जवाब ‘उम्मीद’ ही सोच के समंदर में डूबती कश्ती को सहारा देतीआवाज़…

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