चुनाव आते ही आ जाते हैं नेता जी

चुनाव आते ही दरवाजों पर आ जाते हैंकट्टरता के पुजारी भी रहम खा जाते हैंऔरों को हिन्दू-मुस्लमान का पाठ पढ़ाखुद मजहबी टोपी पहना जानते हैं यूँ तो सरेआम फैलाते हैं नफरतबटोगे तो कटोगे का नारा हमें दे जाते हैंबात जब खुद की कुर्सी पर आ जाये तो,झुकाकर सर, कलमा भी पढ़ा जाते हैं सालों साल…

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जंग जो लड़नी है, जाँबाज़ होना होगा

सूखे दरख्तों को अब हरा होना होगाडूबती कश्ती को किनारे खड़ा होना होगा छोड़ो ये डर ये बुज़दिली ये दर्द में रहनाजंग जो लड़नी है तो जाँबाज़ होना होगा वक़्त है ख़्वाबों को हक़ीक़त में बदलने कानाज़ुक कलाई कमज़ोर कंधों को मजबूत होना होगा कर लिया इंतिज़ार अँधेरे के हटने काअब सितारों को रौशनी में…

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अधूरी दास्तान

अधूरी दास्तान, मोहब्बत की सुनो गर जो कभी तुम्हे खुद से नफ़रत होने लगेतो मेरी मोहब्बत याद कर लेनागर जो कभी खुद की गलतियों पे नदामत होने लगेतो मेरी मोहब्बत याद कर लेना माना कि मुश्किल होगा ये सफर हमारा तुम्हारे बिनापर तुम कभी मुझपर तरस खा कर वापस नहीं आनाहो सकता है अब कभी…

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तुम आओगी क्या ?

तुम आओगी क्या ? जब कभी आवाज़ दूंगा, तुम आओगी क्यागिर गया जो अपनी निगाहों में,तुम उठाओगी क्यासीख जाऊंगा मैं सारा फ़लसफ़ातुम अदब-ओ-एहतराम से मुझे सिखाओगी क्या कर लूं मैं यकीन तुम्हें अपना अक्स मान करदे दूं सारा हक़ तुम्हें,ज़िम्मेदारी से निभा पाओगी क्याहोगी जब जरूरत मेरी रहूंगा साए सा साथ तुम्हारेतुम मेरी ज़रूरत में…

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रंगों से पहचान

रंगों से तुम हमारी पहचान करते होलाल से हिंदू हरे से मुसलमान करते हो हम हैं एक,एक है रंग खून का,फिर क्यूफैला कर नफ़रत यूं सरे आम करते हो पसंद है सबको सुकून-ए-क़ल्ब,तो क्योंनन्हें परिंदो को यूं बे-जान करते हो माना है मज़हब अलग,पर खुदा एक हैफिर क्यों मज़हब पर कत्ल-ए-आम करते हो फैला कर…

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जंग जो लड़नी है, जाँबाज़ होना होगा

सूखे दरख़्तों को अब हरा होना होगाडूबती कश्ती को किनारे खड़ा होना होगा छोड़ो ये डर ये बुज़दिली ये दर्द में रहनाजंग जो लड़नी है तो जाँबाज़ होना होगा वक़्त है ख़्वाबों को हक़ीक़त में बदलने कानाज़ुक कलाई कमज़ोर कंधों को मजबूत होना होगा कर लिया इंतिज़ार अँधेरे के हटने काअब सितारों को रौशनी में…

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आओ नया मुल्क बनाएं

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई चारों मिलएक थाली मे खाएंमुल्क की तरक्की का जिम्माअपने कंधों पर हम उठाएंआओ नया मुल्क बनाएं हरा,सफेद, केसरिया मिला एक तिरंगाअपने हाथों में उठाएंचारों मिल उसे बुलंदियों पर ले जाएँशीश शिखर पर अपना हम उठाएंआओ या मुल्क बनाएं क्यों ना तहजीबों की एक मसाल बनाएंएकता की चिंगारी से नफरतों को खूब…

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वो औरत है जनाब

वो बिन कसूर दर्द बेहिसाब सहती हैएक बार नहीं महीने मे सात-सात बार सहती हैउन दिनों वो सहमी सी रहती हैशर्म से बातें भी कहां किसी से किया करती है। क्या मंदिर क्या मस्जिद क्या घाट किनारेअब तो रसोई में जाने पर भी पाबंदी रहती हैकसूर ना होकर भी कसूरवार वो रहती हैये एक नहीं…

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बातें लखनऊ की

ए लखनऊ तेरी हवाओं में भी नज़ाकत बहती हैइस शहर में रहने भर से वाबाओं से शिफ़ा मिलती है आप जनाब का है तरीका अदब से बातें करते हैं लोगइमारतें हैं आ’ला देखने भर से चेहरों पर मुस्कान खिलती है जो आते हैं दूर-दराज़ से मुसाफ़िर यहीं के हो जातेयहां की चमक-धमक में भी एक…

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कौन जाने कब क्या होगा

कौन जाने कब क्या-क्या होगाकिस्मत का लिखा किसे पता होगा किसी के सर सजेगा सेहराकोई कफ़न में लिपटा होगा दाएं से उठेगी डोली किसी कीबाएं किसी का जनाजा होगा बाद वक्त,किसी के घर गूंजेगी किलकारियांकिसी के घर आज भी मातम पसरा होगा किसी का लाल टहलेगा आँगन में, तब तकएक मां का चाँद बादलों में…

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