तुम आओगी क्या ?

तुम आओगी क्या ? जब कभी आवाज़ दूंगा, तुम आओगी क्यागिर गया जो अपनी निगाहों में,तुम उठाओगी क्यासीख जाऊंगा मैं सारा फ़लसफ़ातुम अदब-ओ-एहतराम से मुझे सिखाओगी क्या कर लूं मैं यकीन तुम्हें अपना अक्स मान करदे दूं सारा हक़ तुम्हें,ज़िम्मेदारी से निभा पाओगी क्याहोगी जब जरूरत मेरी रहूंगा साए सा साथ तुम्हारेतुम मेरी ज़रूरत में…

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कौन जाने कब क्या होगा

कौन जाने कब क्या-क्या होगाकिस्मत का लिखा किसे पता होगा किसी के सर सजेगा सेहराकोई कफ़न में लिपटा होगा दाएं से उठेगी डोली किसी कीबाएं किसी का जनाजा होगा बाद वक्त,किसी के घर गूंजेगी किलकारियांकिसी के घर आज भी मातम पसरा होगा किसी का लाल टहलेगा आँगन में, तब तकएक मां का चाँद बादलों में…

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किसी में ज़्यादा किसी में कम है

किसी में ज़्यादा किसी में कम हैयहां हर शख्स की जिंदगी में गम है कोई खुश है कच्चे मकानों मेंकिसी के लिए महल भी कम है कोई छुपा लेता है अपने आंसूकिसी की आंखें आज भी नम है बद-हाली से कई हार चुके हैं ये जंगजीतेगा वही जिसमें जीतने का दम है। मोहम्मद इरफ़ान

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मैं मेरी तन्हाई और अधूरे ख्वाब

बंद कमरा, खुली आंखों में जागते कई ख्वाबमैं, मेरी तन्हाई चार दिवारी और चंद किताब घड़ी की टिक-टिक, काली सियाह अंधेरी रातबढ़ती उम्र, मांगती नाकामयाबी का हिसाब फिर पूछूं जो खुद से सवाल, किया क्या अब तकगहरी सोच, खामोश लब, नहीं मिलता कोई जवाब ‘उम्मीद’ ही सोच के समंदर में डूबती कश्ती को सहारा देतीआवाज़…

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