क्या गम है, जो छुपाते हो ?

क्या गम है जो छुपाते हो, सहमे से रहते हो
अंदर ही अंदर में बोलकर किसे समझाते हो
गम में रहकर भी जीना, कोई जीना है
वजह तुम किसी से क्यों नहीं बताते हो?

औरों को मस्जिद का रास्ता बता कर
खुद मयखाने की तरफ निकल जाते हो
जिंदगी के सबक तो सीख लिए हैं पहले ही
अब आईना देखने से क्यों घबराते हो ?

माना की दावेदारी रखते हैं कई जिनकी
तुम भी उन्हीं पर अपना हक जताते हो
छोड़ो भी यूं जख्मों को कुरेदना
इसका इलाज क्यों नहीं करवाते हो?

वक्त है अभी भी संभल जाने का
तो रास्ता नया क्यों नहीं बना पाते हो
एक ही बार के लिए मिली है जिंदगी
इसे मुस्कुरा कर क्यों नहीं बिताते हो ?

क्या गम है जो छुपाते हो, सहमे से रहते हो
किसी से कुछ क्यों नहीं बताते हो?

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