यूँ तो राजधानी दिल्ली ने बहुतों को बहुत कुछ दिया लेकिन हम इंसानों ने क्या किया दिल्ली का दिल ही ले लिया। दिल ले लिया से मेरा मतलब है सुकून दिल्ली में आज सब कुछ तो है लेकिन एक महज कमी है तो वो है शुद्ध हवा की जो की दूर दूर तलक नहीं है लेकिन इन सब के पीछे कारण है हम इंसान को गलतिया। हम अपनी सुख सुविधा के लिए इतना खुदगर्ज होते चले जा रहे हैं कि हमे पर्यावरण की कोई परवाह नहीं है। ये सड़कों में बिना जरूरत दौड़ती गाड़ियां ये बड़ी बड़ी बिल्डिगों में लगी AC से निकलने वाली गैस ये सब क्या है। ये सवाल हम गर खुद से पूछें तो जवाब आता है कि यही वो गंध है जो हमने खुद फैलाई है। और आज आलम ये है कि इंसान चैन से खुली हवा में सांस भी नहीं ले पा रहा है।
दिल्ली में प्रदूषण की समस्या चरम पर है दिल्ली सरकार के अनेक प्रयासों के बाद भी प्रदूषण पर पूरी तरह रोक नहीं लग पाई है। दिल्ली में भले ही कूड़े के लगे अंबर और कूड़े के लगे पहाड़ों को हटाने के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है।हैरानी की बात यह है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी यह कह दिया है कि लगभग 19 मिलियन लोगों के रहने वाले इस शहर दिल्ली की हवा अब रहने लायक नहीं बची है।
फिर भी या प्रदूषण की समस्या केंद्र सरकार और राज्य सरकार के आपसी मतभेद के बीच बढ़ती जा रही है।बात करें इतनी प्रदूषण फैलने की तो इसका सबसे बड़ा कारण है मोटर वाहनों से निकलने वाला धुवां। अब इन सब में सवाल ये बनता है कि सरकारें आज भले ही एक एक दूसरे पर आरोप लगा लें लेकिन असल में तो ये हकीकत है कि यही सत्ता में बैठे नेता अगर आपस में बात चीत कर लें और विज्ञान की मदद लें तो ये प्रदूषण की समस्या खत्म हो सकती है।