तुम आओगी क्या ?
जब कभी आवाज़ दूंगा, तुम आओगी क्या
गिर गया जो अपनी निगाहों में,तुम उठाओगी क्या
सीख जाऊंगा मैं सारा फ़लसफ़ा
तुम अदब-ओ-एहतराम से मुझे सिखाओगी क्या
कर लूं मैं यकीन तुम्हें अपना अक्स मान कर
दे दूं सारा हक़ तुम्हें,ज़िम्मेदारी से निभा पाओगी क्या
होगी जब जरूरत मेरी रहूंगा साए सा साथ तुम्हारे
तुम मेरी ज़रूरत में रह पाओगी क्या
वाकिफ नहीं हूं अभी इन हुब्ब की गलियों से
आया जो कभी तुम्हारी गली,पहचान पाओगी क्या
सुना है बड़ा खूबसूरत है शहर तुम्हारा
कभी इस मुसाफ़िर को भी शहर अपना घुमाओगी क्या
वल्लाह ये आंखें खूबसूरत हैं तुम्हारी
आंखो से आंखें जो मिली तुम इसमें डूब जाओगी क्या
और सुनो, हिजाब जचता है तुम पर
हुआ जो कभी मुखातिब रुख से अपने पर्दा हटाओगे क्या
खताओं से है रिश्ता-नाता गहरा मेरा
कर दी जो खता कभी मुझे माफ़ कर पाओगी क्या
भूल कर सारे सिकवे गिले
लौट कर गले लगाओ क्या,करीब मेरे ठहर जाओगी क्या
By-Mohammad Irfan